Sunday, 1 February 2009

मुद्दत-ए-मोहब्बत

मुहब्बत में आपकी
मुनब्बत किया
मुलकत पर
मुलकित हुए थे
यह जान...
मल़हक़ थे उस वक्त
मुलम्मा किया मेरी
मुहब्बत को
मुलहिम थे
मुरब्बी थे खुद ही
मुशर्रफ किया था मुझे
मुबाशरत जान मुदित हुए थे तुम।
मुद्दत-दराज हुई यह वाक्या
मुब्तला-ए-बला हूं आज
मुरतकिब कहा जाता हूं
मसलन मुरतिद हो गया हूं
मुशाहरा की तरह भी अब
मुहब्बत नहीं आती
मुदम्मिग महमहा मुहतरमा की।

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