Tuesday, 24 February 2009

जुल्मों की दास्तां नमक का महाबाड़

भारत की गरीबी और भ्रष्टाचार, ब्रिटिश शासन के छल कपट और फरेब, देश के रजवाड़ों का बिकाऊपन। इन सब जुल्मों का निकाय एक बहुत ही मामूली चीज के कारोबार में सारी झलक दिखा देता है।

राय मैक्सहम की पुस्तक दी ग्रेट हैज पूरे सबूतों के साथ इसे बताती है कि 350 वर्षों के ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रजों ने करोड़ों भारतीयों के खून की होली ही नहीं खेला बल्कि नमक जैसी जरूरी चीज से वंचित कर उनके शरीर और मानसिकता का पीढ़ियों तक क्षय कर दिया है। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने नमक पर लागू किए गए कर वसूलने के लिए एक ऐसी अमानवीय व्यवस्थाएं गढ़ी जिसके समांतर व्यवस्था दुनिया में कहीं और कभी नहीं मिलती है। देश के एक बड़े हिस्से में ऐसी कस्टम लाईन बनाई गई थी कि कोई असमान्य व्यक्ति ही उसे पार कर सकता है। सन् 1869 में बनी सिंधु नदी से लेकर महानन्दी तक फैली 2,300 मील लंबी इस कस्टम लाईन की सुरक्षा के लिए लगभग 12,000 सेना तैनात था। यह कस्टम लाईन कटीली झाड़ियों और पेड़ों से बनी एक विशालतम लंबी और अमेद्य करने की कहानी सन् 1757 में राबर्ट क्लाईव की बंगाल विजय से शरू हुई थी। बंगाल विजय के बाद कम्पनी ने ऐसी बहुत सी जमीन खरीदी, जिस पर नमक उद्योग चलता था। रोतों-रात कंपनी ने जमीन का किराया दुगना कर दिया और नमक पर निकासी कर लगा दिया।

सन् 1964 में बिहार, उड़ीसा और बंगाल की दीवानी और सारी आय अपने हाथों में ले लिया। क्लाईव के नेतृत्व में कम्पनी के 61 वरिष्ठ अधिकारियों ने एक नई एक्सक्लूसिव कंपनी बना ली थी। नमक, सुपारी व तेंदु पत्तों के व्यापार पर एकाधिकार इस नए कम्पनी को दे दिया गया था। अब कम्पनी को छोड़ नमक के व्यापार से जुड़े़ सभी लोगों का कारोबार गैरकानूनी हो गया था। कम्पनी के अलावा कोई भी नमक न पैदा कर सकता था, न बेच सकता था। इसके साथ ही नमक पर लगा टैक्स और बढ़ा दिया गया। सन् 1780 में नमक कर से कम्पनी को 70 लाख पौंड की कमाई हुई थी।

गौरतलब है कि नमक जैसी चीज साधारण चौके से बाहर हो गई थी। तब आसपास के रजवाड़ों और खासकर उड़ीसा की नमक क्यारियों का सस्ता और बेहतरीन नमक चोरी छुपे बंगाल में आने लगा। इससे नए एक्सक्लूसिव कंपनी को नुकसान होने लगा। इसे रोकने के लिए सन् 1804 में कंपनी ने उड़ीसा पर चढ़ाई कर सारा नमक उत्पादन अपने कब्जे में ले लिया। समुद्र किनारे बसे जो प्रदेश समुद्र के खारे पानी को क्यारियों में फैलाकर सूरज की किरणों से सहज ही नमक बनाकर समाज में बेहद सस्ते दाम पर बेचते थे। उसे कम्पनी ने अपने पुश्तैनी धंधे में लगे रहने पर अपराधी बता दिया। हर हाल में नमक का पूरा टैक्स वसूलने के लिए लामबंद कंपनी का सख्त प्रशासन और सस्ते नमक पाने के लिए तरसते साधारण जनमानस समय के साथ सती होने के कगार पर खड़ा था। इसी से जन्म हुआ नमक कर वसूलने के लिए कस्टम लाईन, जो आगे चलकर महाबाड़ बन गई।

यह महाबाड़ दो चार ब्रितानी लोगों का बेहूदा फितूर नहीं था। यह आम भारतीयों को सहज उपलब्ध नमक से वंचित रखने के लिए तैयार किया गया एक षडयंत्र था। इसे बेहद कड़ी निगरानी और बेरहमी से लागू करने में कई प्रबुद्ध अंग्रेज अधिकारी तैनात किए थे।

नमक के टैक्स की पूरी और पक्की वसूली के लिए, कम्पनी प्रशासन ने हर जिले में एक कस्टम चौकी नाका बनाया था। यहां से कर चुकाने के बाद ही नमक आगे जाता था। फिर अधिकारियों ने पाया कि लोग चोरी-छुपे नाके से नमक आगे ले जाते हैं। 1823 में कम्पनी ने यमुना से लगे सभी सड़कों, रास्तों और व्यापार मार्गों पर भी कस्टम चौकियों की एक श्रृंखला तैनात कर दी। 1834 में प्रशासनिक निर्णय हुआ कि सभी चौकियों को आपस में जोड़ दिया जाए। चौकियों की सही अनवरत श्रृंखला महाबाड़ बनी।

बेहद ही सख्त और जबर्दस्त थी बाड़ की व्यवस्था। इसके हर मिल पर चौकी, चौकी पर गार्ड दस्ता, हर दो चौकियों को जोड़ता एक उंचा पुश्ता, पुश्ता पर 20-40 फीट चौड़ी और लगभग 20 फीट उंची कहीं सजीव कहीं सूखी कटीली बाड़। हर एक मील पर एक जमादार तैनात। हर जमादार के नीचे दस गुमाश्ते। दिन-रात लगातार गश्त। ताकि कोई भी हिन्दुस्तानी नमक कर चुकाए बगैर गलती से भी नमक गबन कर जाए।

देशभर में हर वर्ष कस्टम लाईन पर हजारों नमक तस्कर पकड़े जाते थे। गुमश्तों और तस्करों के बीच झगड़े-फसाद और मारपीट की कई वारदातें होती थी। भयानक पिटाई से कई लोगों की जान भी गई थीं। पकड़े जाने पर नमक चुराने की सबसे लंबी सजा थी बारह बरस थी।

सन् 1825 में भारतीय ब्रिटिश सरकार का कुल राजस्व था अस्सी करोड़ पौंड। इसमें से पच्चीस करोड़ पौंड सिर्फ नमक कर से वसूला गया था। यानि भारतीय नमक कर से अंग्रेज खजाने का तीसरा हिस्सा भरा जाता था।

जब बाड़ की अभेद्यता और नमक तस्करी रूकने लगी तब ब्रिटिश प्रशासन की राय भी बदलने लगी। कुछ ही सालों में लोगों को डरा-धमकाकर, खिला-पिलाकर, फुसलाकर अंग्रेज प्रशासन ने औने-पौने दामों पर रजवाड़ों के नमक का सारा उत्पादन हथिया लिया और नमक पैदा होने की जगह पर एक मुश्त टैक्स लगा दी। फिर 1879 में पूरे भारत में नमक पर एक सरीखा शुल्क लागू कर दिया गया। अब न सस्ता नमक रहा, न रही तस्करी। इस तरह से कर एकीकरण के बाद महाबाड़ को अपने हाल पर छोड़ दिया गया।

चंबल के बीहड़ में 20 फुट चौड़ा और 20 फुट ऊंचा पुश्ता पर बेर की झाडि़यों से बना कस्टम लाईन, जिस पर बबूल, कीकर और खैर की कंटीले झुंड बिछे पड़े हैं। जहां-तहां नागफणियां और तरह-तरह की कटीली झाड़ियों के जंगल आज भी अंग्रजों के जुल्मों की कहानी बया करता वह महाबाड़ खड़ा है।

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