Wednesday 28 July 2010

मार्टिन लूथर...

एक विचारक और सुधारक थे। वे मानते थे कि यहूदी पैदायशी झूठे और दुष्ट होते हैं। उनकी एक किताब का शीर्षक ही हैः यहूदी और उनके झूठ। इसमें वे अपने लोगों को धिकारते हैं कि शर्म करो, यहूदी जिन्दा हैं। वे अपने लोगों का आह्वान करते हैं कि इन जहरीले कीड़ों के घर, उपासना स्थल, पवित्र पोथियों जला दी जाएँ। ऐसी हालत कर दी जाए कि यहूदी या तो सदा के लिए, जहन्नुम नहीं तो कहीं और जले जाएँ, ताकि हमारा प्यारा देश उनके फैलाए गन्द से पाक हो। देश में रहना ही है तो यहूदी हमारे दास बन कर रहें। यहूदियों से इस विचारक को इतनी घृणा थी कि कहते थे कि यदि कोई यहूदी मेरे पास बपतिस्मा कराने आए तो उसे पुल से नदी में धक्का देकर कहूँगा- जा हो गया तेरा बपतिस्मा।
हिटलर की नहीं, हम बात कर रहे हैं, मार्टिन लूथर की, जो कबीर के कनिष्ठ समकालीन थे, और जिनसे कबीर की तुलना ब्रिदिश अध्येता करते थे, कुछ तो कबीर को भारतीय लूथर भी बताया करते थे। लूथर का समय 1483-1546 है। यहूदी और उनके झूठ की रचना लूथर ने जवानी के जोश में नहीं, पीढ़ी उम्र में, अपने निधन से तीन साल पहले 1543 में की थी। इस समय वे प्रोटेस्टेंट रिफार्मेशन के जन्मदाता के रूप में विख्यात हो चुके थे, जर्मन सामन्तों के बीच मसीहा की हैसिहत हासिल कर चुके थे। लूथर के यहूदी विरोधी विचारों ने हिटलर को काफी प्रेरित किया था। लूथर के समय और परिवेश में पुस्तक दहन का सांस्कृतिक कार्यक्रम जोर-शोर से चल रहा था, कुरान के लैटिन अनुवाद को भी जलाने का फैसला हो चुका था। लूथर ने कुरान को न जलाने की सिफारिश की, ताकि लोग जान सकें कि इस किताब में कैसी-कैसी शैतानी खुराफातें भरी हुई हैं, और इसका अनुमान करने वाले किस हद तक शैतान की गिरफ्त में हैं।