Tuesday, 24 February 2009

पटना में पनपता कैसेट रिकार्डिंग व्यवसाय

संगीत की दुनिया में दुनिया भर के संगीत की जैसी धूम इस दशक में मची है, इससे पहले शायद कभी रही। जाहिर है, संगीत की तकनीक और रिकॉडिंग आदि की सुविधाएं बढ़ने से इस क्षेत्र में जबर्दस्त बदलाव आया है और इससे जुड़ी प्रतिभाओं की बड़ा बाजार मिला है। बाजार की मांग और पूर्ति के मद्देनजर स्थानीय स्तर पर भी गीत-संगीत की रिकॉडिंग की पहल हुई है और इसने न सिर्फ बड़ी कंपनियों के वर्चस्व को चुनौती दी है, बल्कि स्थानीय बोली-भाषा संगीत और संस्कार को भी एक नया आयाम दिया है। इस कड़ी में बिहार ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की है। गीत-संगीत की समृद्ध परंपरा वाले इस प्रेदेश में प्रतिभाओं की कमी नहीं, बाजार भी कम नहीं, लेकिन बड़ी और राष्ट्रीय स्तर की कंपनियों तक पहुंच की प्रक्रिया न सिर्फ कठिन है, बल्कि नजरिया भी तंग है। ऐसे में कुछ उत्साही लोगों द्वारा इस क्षेत्र में की गई शुरूआत निश्चित ही शुभ संकेत है। जानकारी के मुताबिक गीत-संगीत के कैसेटों की रिकॉडिंग की पहल पटना में सन् 1984 में डब्बू शुक्ला ने की। आज अकेले पटना में ऐसी आधा दर्जन से अधिक रिकॉडिंग स्टूडियो कार्यरत हैं। बताते हैं कि देश की कई जानी-मानी कंपनियां पटना के इन स्टूडियों की सेवाएं लेती हैं और अपने ब्रांड नाम से भी उन कैसेटों को जारी करती है, जिनकी रिकॉडिंग पटना के स्टूडियो करते हैं। जाहिर है, व्यवसायिक नजरिए से पटना के ये स्टूडियो लगातार अपनी पकड़ मजबूत करते जा रहे हैं और गुणवत्ता के हिसाब से किसी भी स्टूडियो से होड़ लेते दिखते हैं।
बिहार में गीत-संगीत की मजबूत परंपरा जहां इसके दोहन की संभावना से भरी है, वहीं फाकामस्ती में गीत-संगीत को सुनने और चाहने वालों की बड़ी तादाद इसे एक बड़े बाजार के रूप में तब्दील करती है। यदि रिकॉडिंग की सुविधाओं के साथ-साथ मार्केटिंग की विधिवत और व्यापक व्यवस्था बने तो कोई कारण नहीं कि यह एक जबर्दस्त मुनाफे का कारोबार साबित हो रहा है।
बिहार में संगीत बाजार शुरू करने का श्रेय विविध स्टूडियो के संचालक रोहित डब्बू को है, और आज यह एक बाजार बेहतर व्यवसाय के रूप में बढ़ रहा है। वर्तमान में छह रिकॉडिंग स्टूडियो पटना के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित हैं। जहां क्षेत्रीय भाषाओं के गानों की रिकॉडिंग की जाती है। क्षेत्रीय भाषाओं में भोजपुरी, अंगिका, मगही, मैथिली प्रमुख है। इनमें सबसे लोकप्रिय भोजपुरी है। फिर अंगिका इन गानों के जरिए अपनी किस्मत संवारते कई गायकों को जबर्दस्त लोकप्रियता मिली है। इन गायकों में गुड्डू रंगीला, भरत सिंह शर्मा व्यास, छैलाबिहारी, मनोज तिवारी, बिजली रानी, कल्पना, मीनू अरोड़ा, अजीत कुमार अकेला, प्रियंका आदि के प्रमुख नाम है, जिन्होंने बिहार के संगीत को नई पहचान दी है। अवसर चोहे दुर्गा पूजा का हो या होली और सावन का सभी अवसरों पर थिरका देने वाले इनके गीतों के जादू से कोई भी अछूता नहीं। जाहिर इन्हें अपने कला के प्रदर्शन के लिए रिकॉडिंग स्टूडियो का सहारा मिला और इन स्टूडियो को इनका साथ। एक एलबम बनाने में एक टीम का अथक परिश्रम होता है। इस टीम में गायक, गीतकार, संगीतकार, और संयोजक आदि होते हैं। टीम के आपसी तालमेल से रिकॉडिंग संभव हो पाती है। बेहतर उच्चारण, तकनीकी ज्ञान, सुर-ताल की जानकारी और तालमेल से कार्य करने की क्षमता हो तो इस क्षेत्र में कैरियर बनाया जा सकता है। बिहार का यह छोटा-सा संगीत बाजार धीरे-धीरे ही सही परवान चढ़ रहा है और अनुकूल हवा-पनी पाकर फले-फूलेगा इससे कतई इंकार नहीं किया जा सकता।




यह लेख 20 नवंबर 2003, को हिन्दुस्तान के सह पेज प्रतिबिम्ब में प्रकाशित हुई है।

1 comment:

  1. लेख के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।एक रिकार्डिंग स्टूडियो लगाने के लिये क्या-क्या आवश्यक है?मैं ये जानना चाहता हूँ।आप कृपया dabboo जी का फोन नम्बर या ई-मेल दें ताकि सम्पर्क हो सके.....मुझे फोन भी कर सकते हैं......एक बार मेरे ब्लाग पर आयें.....वहाँ मेरा ई-मेल भी मिल जायेगा...

    ReplyDelete