Sunday, 1 July 2012

यह पूरा क्षेत्र जम्मू एवं कश्मीर राज्य का अभिन्न भाग है


काराकोरम-पार क्षेत्र या शक्सगाम वादी एक लगभग ५,८०० वर्ग किमी का इलाक़ा है जो कश्मीर के उत्तरी काराकोरम पर्वतों में शक्सगाम नदी के दोनों ओर फैला हुआ है। यह भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा हुआ करता था जिसे १९४८ में पाकिस्तान ने अपने नियंत्रण में ले लिया। १९६३ में एक सीमा समझौते के अंतर्गत पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को चीन को भेंट कर दिया। पाकिस्तान की दलील थी कि इस से पाकिस्तान और चीन के बीच में मित्रता बन जाएगी और उनका कहना था की ऐतिहासिक रूप से इस इलाक़े में कभी अंतरराष्ट्रीय सीमा निर्धारित थी ही नहीं इसलिए इस ज़मीन को चीन के हवाले करने से पाकिस्तान का कोई नुक़सान नहीं हुआ। भारत इस बात का पुरज़ोर खंडन करता है और शक्सगाम को अपनी भूमि का अंग बताता है। उसके अनुसार यह पूरा क्षेत्र भारतीय जम्मू एवं कश्मीर राज्य का अभिन्न भाग है।

भारत का अभिन्न हिस्सा है अक्साई चिन


अक्साई चिन या अक्सेचिन,  चीन, पाकिस्तान और भारत के संयोजन में तिब्बती पठार के उत्तरपश्चिम में स्थित एक विवादित क्षेत्र है। यह कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे स्थित है। ऐतिहासिक रूप से अक्साई चिन भारत को रेशम मार्ग से जोड़ने का ज़रिया था और भारत और हज़ारों साल से मध्य एशिया के पूर्वी इलाकों (जिन्हें तुर्किस्तान भी कहा जाता है) और भारत के बीच संस्कृति, भाषा और व्यापार का रास्ता रहा है। भारत से तुर्किस्तान का व्यापार मार्ग लद्दाख़ और अक्साई चिन के रस्ते से होते हुए काश्गर शहर जाया करता था। १९५० के दशक से यह क्षेत्र चीन क़ब्ज़े में है पर भारत इस पर अपना दावा जताता है और इसे जम्मू और कश्मीर राज्य का उत्तर पूर्वी हिस्सा मानता है। अक्साई चिन जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है। चीन ने इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक ज़िले का हिस्सा बनाया है।

नाम कि उत्पत्ति

'अक्साई चिन'  का नाम उईग़ुर भाषा से आया है, जो एक तुर्की भाषा है। उईग़ुर में 'अक़' का मतलब 'सफ़ेद' होता है और 'साई' का अर्थ 'घाटी' या 'नदी की वादी' होता है। उईग़ुर का एक और शब्द 'चोअल'  है, जिसका अर्थ है 'वीराना' या 'रेगिस्तान', जिसका पुरानी ख़ितानी भाषा में रूप 'चिन'  था। 'अक्साई चिन' के नाम का अर्थ 'सफ़ेद पथरीली घाटी का रेगिस्तान' निकलता है। चीन की सरकार इस क्षेत्र पर अधिकार जतलाने के लिए 'चिन' का मतलब 'चीन का सफ़ेद रेगिस्तान' निकालती है, लेकिन अन्य लोग इसपर विवाद रखते हैं।

विवरण

अक्साई चिन एक बहुत ऊंचाई (लगभग ५,००० मीटर) पर स्थित एक नमक का मरुस्थल है। इसका क्षेत्रफल ४२,६८५ किमी² (१६,४८१ वर्ग मील) के आसपास है। भौगोलिक दृष्टि से अक्साई चिन तिब्बती पठार का भाग है, और इसे 'खारा मैदान' भी कहा जाता है। यह क्षेत्र लगभग निर्जन है और यहां पर स्थायी बस्तियां नहीं है। इस क्षेत्र मे 'अक्सेचिन' नाम की झील और 'अक्सेचिन' नाम की नदी है। यहां वर्षा और हिमपात ना के बराबर होता है क्योंकि हिमालय और अन्य पर्वत भारतीय मानसूनी हवाओं को यहां आने से रोक देते हैं।

भारत-चीन विवाद

चीन ने जब १९५० के दशक में तिब्बत पर क़ब्ज़ा किया तो वहाँ कुछ क्षेत्रों में विद्रोह भड़के जिनसे चीन और तिब्बत के बीच के मार्ग के कट जाने का ख़तरा बना हुआ था। चीन ने उस समय शिंजियांग-तिब्बत राजमार्ग का निर्माण किया जो अक्साई चिन से निकलता है और चीन को पश्चिमी तिब्बत से संपर्क रखने का एक और ज़रिया देता है। भारत को जब यह ज्ञात हुए तो उसने अपने इलाक़े को वापस लेने का यत्न किया। यह १९६२ के भारत-चीन युद्ध का एक बड़ा कारण बना। वह रेखा जो भारतीय कश्मीर के क्षेत्रों को अक्साई चिन से अलग करती है 'वास्तविक नियंत्रण रेखा' के रूप में जानी जाती है। अक्साई चिन भारत और चीन के बीच चल रहे दो मुख्य सीमा विवाद में से एक है। चीन के साथ अन्य विवाद अरुणाचल प्रदेश से संबंधित है।

भगत सिंह की अंतिम ख़त देशवासियों के नाम


सरदार भगत सिंह मृत्यु से प्रायः डेढ़ माह पूर्व अर्थात 2 फरवरी 1931 को अपने एक मित्र को पत्र लिखकर गुप्त रूप से प्रेषित किया था उससे यह स्पष्टतः प्रमाणित हो जाता है कि मृत्यु की छाया में रहते हुए भी उनकी बुद्धि का पैनापन अकुण्ठित बना रहा। उनका दिमाग देश की राजनीतिक स्थिति का बिलकुल सही ढंग से आकलन करता रहा। वह पत्र उसी समय पंजाब के पत्र पंजाब केसरी में निम्नलिखित रूप में प्रकाशित हुआ था-

प्यारे साथियों,
इस समय हमारा आन्दोलन अत्यन्त महत्वपूर्ण परिस्थितियों से गुजर रहा है। एक साल के कठोर संग्राम के बाद गोलमेज कानफ्रेंस ने हमारे सामने विधान में परिवर्तन के संबंध में कुछ निश्चित बातें पेश की हैं और कांग्रेस के नेताओं को निमंत्रण दिया है कि वे आकर शासन विधान तैयार करने के काम में मदद दें। कांग्रेस नेता इस हालत में आन्दोलन को स्थगित कर देने को उद्यत दिखायी देते हैं। वे आन्दोलन को स्थगित करने के हक में फैसला करेंग या उसके खिलाफ, यह बात हमारे लिए बहुत महत्व नहीं रखती। यह बात निश्चित है कि वर्तमान आन्दोलन का अन्त किसी न किसी प्रकार के समझौता के रूप में होना लाजमी है। यह दूसरी बात है कि समझौता जल्दी हो या देरी में हो।
वस्तुतः समझौता कोई ऐसी हेय और निन्दा योग्य वस्तु नहीं, जैसा कि साधारणतः हमलोग समझते हैं, बल्कि समझौता राजनीतिक संग्रामों का एक अत्यावश्यक अंग है। यह जरूरी है कि कोई भी कौम जो किसी अत्याचारी शासन के विरुद्ध खड़ी होती है, आरंभ में असफल हो और अपनी लम्बी जद्दोजहद के काम में इस प्रकार के समझौता के जरिये कुछ राजनीतिक सुधार हासिल करती जाय। परन्तु वह अपनी लड़ाई की आखिरी मंजिल तक पहँचते-पहँचते अपनी ताकतों को इतना संघटित और दृढ़ कर लेती है कि उसका दुश्मन पर आखिरी हमला ऐसा जोरदार होता है कि शासक लोगों की ताकतें उसके उस वार के सामने चकनाचूर होकर गिर पड़ती हैं। ऐसा भी हो सकता है कि उसकी चाल थोड़े समय के लिए धीमी हो तथा उनके नेता शिथिल पड़ जायँ किन्तु जनता की बढ़ती हुई ताकत समझौतों को ठुकराकर उस आन्दोलन को अन्त तक जययुक्त करा ही देती है, नेता पीछे रह जाते हैं, आन्दोलन आगे बढ़ जाता है। यही विश्व इतिहास का सबक है।

तुम्हारा
भगत सिंह

राष्ट्रपति भी भारत में बदलाव ला सकते हैं

भारत का राष्ट्रपति भवन
भारतीय संविधान के अनु 53 (1) राष्ट्रपति में संघ की सारी कार्यपालिका शक्ति निहित करके उसे भारतीय गणराज्य का प्रमुख बना देता है। अनु 53(2) उसे भारतीय सेना का सर्वोच्च सेनापति बनाता है। सेना के सर्वोच्च कमान की उसकी यह शक्ति कानून द्वारा विनियमित होने की बाध्यता है। किन्तु आगे अनु 123 उसे अध्यादेश जारी करने की विधायिनी शक्ति भी प्रदान करता है, जिस शक्ति के प्रयोग में वह कानून बना कर अपनी इस शक्ति को स्वयं अपनी इच्छानुसार किसी भी प्रकार से विनियमित करके सेना को अपने नियंत्रण में रख सकता है और सैनिक-शक्ति के बल पर देश में अपनी इच्छानुसार बदलाव ला सकता है।
उधर, अनु 53(1), यद्यपि राष्ट्रपति में संघ की सारी कार्यपालिका शक्ति निहित करता है, किन्तु यह भी उपबंधित करता है कि वह अपनी शक्ति का प्रयोग संविधान के अनुसार करेगा। संविधान के अनुसार इस पदावली के संदर्भ में राष्ट्रपति की यह शक्ति संविधान के उपबंधों से सीमित हो जाती है और उसका मनमाना प्रयोग नहीं कर सकता है। यदि वह संविधान का उल्लंघन करता है, तो इस आरोप के आधार पर उस पर अनु 61 के अंतर्गत संसद में महाभियोग चलाया जा सकता है और उसे उसके पद से हटाया जा सकता है
फिर भी संविधान के ही अनुसार आगे उसे कुछ ऐसी भी शक्तियां प्रदान की गई हैं जो उसे देश का मालिक बना सकती हैं। उदाहरण के लिए अनु 85 के अंतर्गत वह संसद के किसी भी सदन का सत्रावसान कर सकता है और लोकसभा को भंग कर सकता है और अनु 352 के अंतर्गत आपात की उद्घोषणा करके संसद को भंग कर सकता है और अनु 359 के अंतर्गत मूल अधिकारों को और न्यायालय द्वारा उनके प्रवर्तन के अधिकार को भी निलंबित कर सकता है। इस प्रकार, संविधान का उल्लंघन किये बगैर, संविधान द्वारा पदत्त शक्तियों के द्वारा ही एक देशभक्त राष्ट्रपति भारत को अपनी सपनो का भारत बना सकता है।