भारत का राष्ट्रपति भवन |
उधर, अनु 53(1), यद्यपि राष्ट्रपति में संघ की सारी कार्यपालिका शक्ति निहित करता है, किन्तु यह भी उपबंधित करता है कि वह अपनी शक्ति का प्रयोग संविधान के अनुसार करेगा। संविधान के अनुसार इस पदावली के संदर्भ में राष्ट्रपति की यह शक्ति संविधान के उपबंधों से सीमित हो जाती है और उसका मनमाना प्रयोग नहीं कर सकता है। यदि वह संविधान का उल्लंघन करता है, तो इस आरोप के आधार पर उस पर अनु 61 के अंतर्गत संसद में महाभियोग चलाया जा सकता है और उसे उसके पद से हटाया जा सकता है
फिर भी संविधान के ही अनुसार आगे उसे कुछ ऐसी भी शक्तियां प्रदान की गई हैं जो उसे देश का मालिक बना सकती हैं। उदाहरण के लिए अनु 85 के अंतर्गत वह संसद के किसी भी सदन का सत्रावसान कर सकता है और लोकसभा को भंग कर सकता है और अनु 352 के अंतर्गत आपात की उद्घोषणा करके संसद को भंग कर सकता है और अनु 359 के अंतर्गत मूल अधिकारों को और न्यायालय द्वारा उनके प्रवर्तन के अधिकार को भी निलंबित कर सकता है। इस प्रकार, संविधान का उल्लंघन किये बगैर, संविधान द्वारा पदत्त शक्तियों के द्वारा ही एक देशभक्त राष्ट्रपति भारत को अपनी सपनो का भारत बना सकता है।
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