“जी हाँ, मैंने सत्ता सौंप देने की तारीख तय कर ली
है।” लुई माउण्बैटेन ने 5 जून 1947 को प्रेस
कान्फ्रेंस में एक भारतीय संवाददाता की सवाल का जवाब दिया। जिस समय वह यह बात कह
रहे थे उस समय भी बहुत-सी तारीखें उनेक दिमाग में तेजी से चक्कर काट रही थीं।
सितम्बर के शुरू में? सितम्बर के बीच में? अगस्त के बीच में? अचानक ऐसा लगा कि जुआ खेलने की मेज पर तेजी
से घूमती हुई सुई एक जगह आकर रुक गयी और गोली एक खाने में जाकर इस तरह से टिक गयी
कि माउंटबैटन ने उसी क्षण फैसला कर लिया। इस तारीख के साथ उनके अपने जीवन की सबसे
गौरवशाली विजय की याद जुड़ी हुई थीं। बर्मा के जंगलों में लम्बी लड़ाई इसी दिन
समाप्त हुई थी और जापानी साम्राज्य ने बिना किसी शर्त के आत्म-समर्पण कर दिया था।
नये लोकतांत्रिक एशिया के जन्म के लिए जापान के आत्म-समर्पण की दूसरी वर्षगाँठ से
अच्छी तारीख़ और क्या हो सकती थी?
माउंटबैटन की आवाज अचानक भावनाओं के आवेश से रुँध गयी। उन्होंने एलान
कर दियाः ‘भारतीय हाथों में सत्ता अन्तिम रूप से 15 अगस्त
1947 को सौंपी जायेगी।’ बर्मा के जंगलों का विजेता भारत का
मुक्तिदाता बन गया।
भारत की आजादी की तारीख़ का अचानक अपनी मर्जी से एलान करके माउंटबैटन
भारतीय ज्योतिषियों और कई विद्वानों की नज़र में भारत की भविष्य का सत्यानाश कर
दिया था। 1947 में 15 अगस्त को शुक्रवार पड़ने वाला था और शुक्रवार का दिन अशुभ
होता है।
जैसे ही रेडियो पर माउंटबैटन की तय की हुई तारीख़ का एलान हुआ, सारे
हिन्दुस्तान में ज्योतिषी अपने पंचांग खोलकर बैठ गये। पवित्र नगरी काशी के
ज्योतिषियों ने और दक्षिण के ज्योतिषियों ने फ़ौरन एलान कर दिया कि 15 अगस्त का
दिन इतना अशुभ है कि ‘भारत के लिए अच्छा यही होगा कि हमेशा के
लिए नरक की यातनाएँ भोगने के बजाय वह एक दिन के लिए अँग्रेजों का शासन और सहन कर
ले।’
कलकत्ता में स्वामी मदनानन्द ने इस तारीख़ की घोषणा सुनते ही अपना नवाँश
निकाला और ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति देखते ही वह चीख पड़ेः ‘क्या अनर्थ किया है इन लोगों ने? कैसा अनर्थ किया है
इन लोगों ने!’
उन्होंने फ़ौरन माउंटबैटन को एक पत्र लिखाः ‘भगवान के लिए भारत
को 15 अगस्त को स्वतंत्रता न दीजिये। अगर इसके बाद बाढ़ तथा अकाल का प्रकोप और
नर-संहार हुआ या देश का कोई अहित हुआ तो इसका कारण केवल यह होगा कि स्वतंत्र भारत का जन्म एक अशुभ
दिन हुआ था।’
हम 2012 में भी देख रहे है कि 15 अगस्त 1947 का काला दिन आज तक भारत
में छाया हुआ है। हमारे वेद में कहा गया है कि किसी शैतान का अच्छा दिन अक्सर
इंसान का बुरा दिन होता है। माउंटबैटन का 15 अगस्त अच्छा दिन, संपूर्ण भारतवासी के लिए आज तक बुरा दिन बना हुआ है।
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