जब कोई ईमानदार
नागरिक रात को सो नहीं पाता
जब कोई देशभक्त
उदास हो जाता है
जब कोई क़ाबिल जवान
इम्प्लायमेंट एक्सचेंज की सीढ़ियों पर दिन गुज़ारता है
जब कोई बुद्धिजीवी
किसी कारण किसी का पिछलग्गू बन जाता है
जब कोई लेखक इनाम और
ख़िताब के मोह में दर-दर भटकता है
जब कोई व्यक्ति
अदालत के बरामदे में बचपन से बुढ़ापे में पहुँच जाता है
जब कोई मरीज़
अस्पताल के दालान में बिस्तर लगाता है
जब कोई स्मगलर समाज
में रुत्बा पाता है
जब कोई मुलाज़िम
ताल्लुक़ात की सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर पहुँचता है
दोस्तो,
तब सआदत हसन मंटो
कब्र से निकलकर लिखना शूरू कर देता है।
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