Sunday 1 July 2012

भगत सिंह की अंतिम ख़त देशवासियों के नाम


सरदार भगत सिंह मृत्यु से प्रायः डेढ़ माह पूर्व अर्थात 2 फरवरी 1931 को अपने एक मित्र को पत्र लिखकर गुप्त रूप से प्रेषित किया था उससे यह स्पष्टतः प्रमाणित हो जाता है कि मृत्यु की छाया में रहते हुए भी उनकी बुद्धि का पैनापन अकुण्ठित बना रहा। उनका दिमाग देश की राजनीतिक स्थिति का बिलकुल सही ढंग से आकलन करता रहा। वह पत्र उसी समय पंजाब के पत्र पंजाब केसरी में निम्नलिखित रूप में प्रकाशित हुआ था-

प्यारे साथियों,
इस समय हमारा आन्दोलन अत्यन्त महत्वपूर्ण परिस्थितियों से गुजर रहा है। एक साल के कठोर संग्राम के बाद गोलमेज कानफ्रेंस ने हमारे सामने विधान में परिवर्तन के संबंध में कुछ निश्चित बातें पेश की हैं और कांग्रेस के नेताओं को निमंत्रण दिया है कि वे आकर शासन विधान तैयार करने के काम में मदद दें। कांग्रेस नेता इस हालत में आन्दोलन को स्थगित कर देने को उद्यत दिखायी देते हैं। वे आन्दोलन को स्थगित करने के हक में फैसला करेंग या उसके खिलाफ, यह बात हमारे लिए बहुत महत्व नहीं रखती। यह बात निश्चित है कि वर्तमान आन्दोलन का अन्त किसी न किसी प्रकार के समझौता के रूप में होना लाजमी है। यह दूसरी बात है कि समझौता जल्दी हो या देरी में हो।
वस्तुतः समझौता कोई ऐसी हेय और निन्दा योग्य वस्तु नहीं, जैसा कि साधारणतः हमलोग समझते हैं, बल्कि समझौता राजनीतिक संग्रामों का एक अत्यावश्यक अंग है। यह जरूरी है कि कोई भी कौम जो किसी अत्याचारी शासन के विरुद्ध खड़ी होती है, आरंभ में असफल हो और अपनी लम्बी जद्दोजहद के काम में इस प्रकार के समझौता के जरिये कुछ राजनीतिक सुधार हासिल करती जाय। परन्तु वह अपनी लड़ाई की आखिरी मंजिल तक पहँचते-पहँचते अपनी ताकतों को इतना संघटित और दृढ़ कर लेती है कि उसका दुश्मन पर आखिरी हमला ऐसा जोरदार होता है कि शासक लोगों की ताकतें उसके उस वार के सामने चकनाचूर होकर गिर पड़ती हैं। ऐसा भी हो सकता है कि उसकी चाल थोड़े समय के लिए धीमी हो तथा उनके नेता शिथिल पड़ जायँ किन्तु जनता की बढ़ती हुई ताकत समझौतों को ठुकराकर उस आन्दोलन को अन्त तक जययुक्त करा ही देती है, नेता पीछे रह जाते हैं, आन्दोलन आगे बढ़ जाता है। यही विश्व इतिहास का सबक है।

तुम्हारा
भगत सिंह

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