दिल्ली में रथ को कुछ लोग स्त्रीलिंग और कुछ लोग पुल्लिंग बोलते हैं। किसी ने एक बार मिर्ज़ा ग़ालिब से पूछा कि सही क्या है? मिर्ज़ा ने जवाब दिया कि जब रथ में औरतें बैठी हो तो स्त्रीलिंग और मर्द बैठे हो तो पुल्लिंग। ... इस पर किसी ने फ़रमाया- अच्छा, इसी तरह मर्द पहने तो जूता और औरत पहने तो जूती। मिर्ज़ा ने उसे सुधारा- नहीं, मियाँ, ज़ोर से पड़े तो जूता और हौले पड़े तो जूती।
एक बार मिर्ज़ा कर्नल ब्राउन से मिलने गये। उसने इनकी पोशाक देखकर पूछा- तुम मुसलमान हो। मिर्ज़ा ने कहा- आधा। कर्नल ने सवाल किया- क्या मतलब। मिर्ज़ा ने जवाब दिया- शराब पीता हूँ, सुअर नहीं खाता।
एक दिन एक परिचित मिर्ज़ा से मिलने रात को ही चले गए। वो जब जाने लगे तो मिर्ज़ा शमादान लेकर नीचे तक आए। मेहमान ने कहा- आपने क्यों ज़हमत उठाई। मैं अपना जूता तो पहचान ही लेता।
मिर्ज़ा ने कहा- मैं तो शमादान इसलिए लाया हूँ कि कहीं आप मेरा जूता पहनकर न चले जाएं।
मिर्ज़ा आम के बड़े शौकीन थे। एक दिन अपने दोस्त के साथ आम चूस रहे थे। छिलके और गुठलियां गली के परले सिरे पर फिंकवा दी गई। एक गधा उधर से निकला। छिलके-गुठलियां सूंघकर, बिना खाये आगे बढ़ गया। शख्स़ ने कहा- देखा मिर्ज़ा गधे भी आम नहीं खाते। मिर्ज़ा ने तुरंत जवाब दिया- हाँ, मियाँ गधे ही आम नहीं खाते।
गरीबी और लगातार आर्थिक कठिनाईयों के बावजूद ग़ालिब ने कभी अपने स्वाभिमान का सौदा नहीं किया। दिल्ली कॉलेज के लिए फारसी के एक प्रोफेसर की तलाश थी। कुछ लोगों न ग़ालिब का नाम सुझाया। उन्हें बुलाया गया। पालकी पर सवार ग़ालिब, सेक्रेटरी के घर पहुँचे। उनको इत्तला की गई। ग़ालिब पालकी से उतरकर इस भरोसे में बाहर ही रुके कि उनके स्वागत के लिए सेक्रेटरी आयेंगे। जब बहुत देर हो गयी और सेक्रेटरी को वजह मालूम हुई तो वह खुद बाहर आए और उसने मिर्ज़ा से कहा- आप जब गवर्नर के दरबार में आयेंगे तब आपका इस्तकबाल किया जाएगा लेकिन इस वक्त तो आप नौकरी के लिए आए हैं। आपका उस तरह ख़ैर मक़दम तो नहीं किया जा सकता। मिर्ज़ा ने कहा- सरकार की मुलाजमत का इरादा इसलिए किया कि इज्ज़त मैं इज़ाफा हो, यहाँ तो मौजूदा एजाज़ मैं ही फ़र्क आ रहा है। मुझे इस खिदमत से माफ़ रक्खा जाए। और मिर्ज़ा वापस चले आए।
वह तो कॉलेज की नौकरी थी ग़ालिब तो इतने खुद्दार थे कि अगर क़ाबे का भी दरवाज़ा खुला न मिले तो वो वहाँ से भी वापस आ जाँय।
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