26 जनवरी से 6 फरवरी तक चलने वाला 35वें कोलकता पुस्तक मेले में माओवादियों के खिलाफ सैन्य आपरेशन बंद करने की मांग, विनायक सेन की रिहाई व चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद की फर्जी तरीके से हुई मुठभेड़ की गूंज से लेकर गणशक्ति के स्टाल के समक्ष विक्षोभ प्रदर्शन, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों की रैली, पुलिस के साथ तीखी तकरार और करीब 20 लोगों के खिलाफ दायर एफआईआर जैसी घटनाएं सुर्खियां रहीं।
इन घटनाओं के साथ छह फरवरी को संपन्न हुआ 35वां पुस्तक मेला कई सवाल भी छोड़ गया। मेले में माओवादियों के राजनीतिक दर्शन को सही साबित करने वाली लघु पत्रिका व पुस्तकें भी खूब बिकीं। प्रसारित किये गये एक बुकलेट में तो यहां तक लिखा था कि ‘कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया’ पश्चिम बंगाल में अन्य राज्यों की तरह प्रतिबंधित नहीं है, और यहां विचार रखने की पूरी आजादी है। चिकित्सक विनायक सेन और मुठभेड़ में मारे गए माओवादी नेता आजाद से संबंधित साहित्य के कई लघु पत्रिकाओं स्टॉल पर उपलब्ध रहे और खरीदार भी संख्या में कम नहीं थी। पुस्तक मेले में लाइफ टर्म ऑफ डा विनायक सेन, आजाद एंड हिज राइटिंग के लिये खरीदार तलाशे जाते रहे। मेले में माकपा के गणशक्ति के समक्ष विरोध प्रदर्शन भी चौंकाने वाला था। लेखक अरंदम सेन की पुस्तिका माओइज्म, स्टेट एंड इंडियन कम्युनिस्ट मूवमेंट की भी बुद्धिजीवियों में चर्चा रही। मेले में ही आपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ नारा भी बुलंद हुआ। हालांकि मेले में माओवाद के प्रति नरम रुख रखने वाले बुद्धिजीवियों के कार्य-कलाप पर पुलिस की नज़र थी लेकिन विनायक और आजाद की असलियत को आम आदमी से बताने का मौका कुछ लघु पत्रिका स्टाल नहीं छोड़ रहे थे। मेले की आयोजक संस्था पब्लिशर्स एंड बुक सेलर्स गिल्ड के सचिव त्रिदिव चट्टोगाध्याय ने कहा कि पुस्तक मेले का कुछ लोगों द्वारा राजनीतिक कारणों से प्रयोग किया गया जो अनुचित था।
इन घटनाओं के साथ छह फरवरी को संपन्न हुआ 35वां पुस्तक मेला कई सवाल भी छोड़ गया। मेले में माओवादियों के राजनीतिक दर्शन को सही साबित करने वाली लघु पत्रिका व पुस्तकें भी खूब बिकीं। प्रसारित किये गये एक बुकलेट में तो यहां तक लिखा था कि ‘कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया’ पश्चिम बंगाल में अन्य राज्यों की तरह प्रतिबंधित नहीं है, और यहां विचार रखने की पूरी आजादी है। चिकित्सक विनायक सेन और मुठभेड़ में मारे गए माओवादी नेता आजाद से संबंधित साहित्य के कई लघु पत्रिकाओं स्टॉल पर उपलब्ध रहे और खरीदार भी संख्या में कम नहीं थी। पुस्तक मेले में लाइफ टर्म ऑफ डा विनायक सेन, आजाद एंड हिज राइटिंग के लिये खरीदार तलाशे जाते रहे। मेले में माकपा के गणशक्ति के समक्ष विरोध प्रदर्शन भी चौंकाने वाला था। लेखक अरंदम सेन की पुस्तिका माओइज्म, स्टेट एंड इंडियन कम्युनिस्ट मूवमेंट की भी बुद्धिजीवियों में चर्चा रही। मेले में ही आपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ नारा भी बुलंद हुआ। हालांकि मेले में माओवाद के प्रति नरम रुख रखने वाले बुद्धिजीवियों के कार्य-कलाप पर पुलिस की नज़र थी लेकिन विनायक और आजाद की असलियत को आम आदमी से बताने का मौका कुछ लघु पत्रिका स्टाल नहीं छोड़ रहे थे। मेले की आयोजक संस्था पब्लिशर्स एंड बुक सेलर्स गिल्ड के सचिव त्रिदिव चट्टोगाध्याय ने कहा कि पुस्तक मेले का कुछ लोगों द्वारा राजनीतिक कारणों से प्रयोग किया गया जो अनुचित था।
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